Madhu varma

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लेखनी कविता - छायाभास - जगदीश गुप्त

छायाभास / जगदीश गुप्त


बचपन में
काग़ज़ पर

स्याही की बूंद डाल
कोने को मोड़ कर
छापा बनाया

जैसा रूप
रेखा के इधर बना,
वैसा ही ठीक उधर आया।

भोर के धुंधलके में
ऎसी ही लगी मुझे
छतरीदार नाव के
साथ-साथ चलती हुई छाया ।

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